
महाभारत युद्ध के समय द्रोणाचार्य की उम्र लगभग चार सौ साल की थी। उनका वर्ण श्यामल था, किंतु सर से कानों तक छूते दुग्ध की भाँति श्वेत केश उनके मुख मंडल की शोभा बढ़ाते थे। अति वृद्ध होने के बावजूद वो युद्ध में सोलह साल के तरुण की भांति हीं रण कौशल का प्रदर्शन कर रहे थे। गुरु द्रोण का पराक्रम ऐसा था कि उनका वध ठीक वैसे हीं असंभव माना जा रहा था जैसे कि सूरज का धरती पर गिर जाना, समुद्र के पानी का सुख जाना। फिर भी जो अनहोनी थी वो तो होकर हीं रही। छल प्रपंच का सहारा लेने वाले दुर्योधन का युद्ध में साथ देने वाले गुरु द्रोण का वध छल द्वारा होना स्वाभाविक हीं था।
उम्र चारसौ श्यामलकाया शौर्योगर्वित उज्ज्वल भाल,
आपाद मस्तक दुग्ध दृश्य श्वेत प्रभा समकक्षी बाल।
वो युद्धक थे अति वृद्ध पर पांडव जिनसे चिंतित थे,
गुरुद्रोण सेअरिदल सैनिक भय से आतुर कंपित थे।
उनको वधना ऐसा जैसे दिनकर धरती पर आ जाए,
सरिता हो जाए निर्जल कि दुर्भिक्ष मही पर छा जाए।
मेरुपर्वत दौड़ पड़े अचला किंचित कहीं इधर उधर,
देवपति को हर ले क्षण में सूरमा कोई कहाँ किधर?
ऐसे हीं थे द्रोणाचार्य रण कौशल में क्या ख्याति थी,
रोक सके उनको ऐसे कुछ हीं योद्धा की जाति थी।
शूरवीर कोई गुरु द्रोण का मस्तक मर्दन कर लेगा,
ना कोई भी सोच सके प्रयुत्सु गर्दन हर लेगा।
किंतु जब स्वांग रचा द्रोण का मस्तक भूमि पर लाए,
धृष्टद्युम्न हर्षित होकर जब समरांगण में चिल्लाए।
पवनपुत्र जब करते थे रणभूमि में चंड अट्टाहस,
पांडव के दल बल में निश्चय करते थे संचित साहस।
गुरु द्रोण के जैसा जब अवरक्षक जग को छोड़ चला,
जो अपनी छाया से रक्षण करता था मग छोड़ छला।
तब वो ऊर्जा कौरव दल में जो भी किंचित छाई थी,
द्रोण के आहत होने से निश्चय अवनति हीं आई थी।
अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments