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हम प्यासे हैं पीने वाले
पीने का सुख जानते हैं
पैदा हो कर जो सुधा पिया
उस मां का ऋण पहचानते हैं ।
दादी नानी कि लोरी में
चांद देश कि कटोरी में
अब भी ज़िद पर कुछ ठानते हैं
चंदा को मामा मानते हैं।
वो जोश उमङ मे खेल-खेल
भरी दुपहरी झेल-झेल
कल पर कतार लगाकर
प्यास कि आस को जानते हैं ।
किशोरावस्था मे पहुंच हमने
पथिको कि प्यास को जाना
कवियों कि रमनीय दुनियां में
अलियो कि प्यास को माना।
बच्चन साहब कि कविताओं में
हुम भी साकी पर खूब लुटे
पीने का चस्का ऐसा लगा
अब शायद इसक
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