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हर गांव कस्बे की तरह
मेरा कस्बा भी बदल गया
देखो घरों को दुकानों का
बनावटी शकल मिल गया
कातर आँखे मेहमानों में
ग्राहक ही ढूँढा करती हैँ
बेरोजगारी का किस्सा भी
बेबसी से सा़झा करती है
कच्चे रोड पक्के हो गए
पर पेड़ों ने हरजाने भरे
कुछ अलाव में जल गए
बचे वो आंधी में गिर पड़े
हवाएं धूल से भरे यहाँ
जो मन में भी जम गए
किस्त के मोटर गाड़ीयों ने
क्या खुब चमत्कार है किए
हमने विकास के नाम पे
क्या खूब पाखंड किए
अपनी लालच के लिए
सब ईमान धर्म तज दिए
अजय झा **चन्द्रम्**
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