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तपस्या व अभ्यास
अभ्यास तपस्या का यथार्थ वर्णन,
उन्मुक्त मन को बांध करना इक नया सृजन।
इन्द्रियों को बांधता जो सारथी,
है कथा जीवन उसी संग्राम की।
भय, क्रोध, लोभ, स्वार्थ, काम,
उठो तुम उनसे परे तब पोहचो कृष्ण वाम।
उसी शरण में जाना कहलाएगा यथार्थ,
बस इसी परिश्रम को कहता हर ग्रंथ पुरुषार्थ।
शांत चित्त, स्थिर मन,
आभास हो बस उस परम चेतना का।
श्वास भी हो ना करे अन्यथा गमन,
इसी अभ्यास को कहते साधना,
होता यही सर्वस्व, होता यही सत्य,
निशचित ही यही परम मिलन।
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