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समझते थे खुद को हीरा मगर हम शीशा भी न निकले
ना खुदका का बचा ठिकाना कोई ज़माने से भी फिसले
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समझते थे खुद को हीरा मगर हम शीशा भी न निकले
ना खुदका का बचा ठिकाना कोई ज़माने से भी फिसले
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