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सुनो,कैसे खोजूँ,
कि कैसे सहेजूँ
कहो कैसे समेटूँ,
स्वयं को मैं कान्हा!
...
जितना तड़पूँ,
उतना ही तरसूँ,
कितना भी बरसूँ,
स्वयं; भींगूँ मैं कान्हा!
...
ये चित मेरा,
जपे नाम तेरा,
कित डालूँ डेरा,
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