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उल्फतें कि रुसवाई,
उजलतें कि बीनाई,
जिस्म–रूह चाक हुए
अब ‘फ़क़त’
जोड़–तोड़ तुरपाई।
....
©अबोध_मन//“फरीदा” ...✍
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उल्फतें कि रुसवाई,
उजलतें कि बीनाई,
जिस्म–रूह चाक हुए
अब ‘फ़क़त’
जोड़–तोड़ तुरपाई।
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©अबोध_मन//“फरीदा” ...✍
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