
है तुम्हें भी इश्क़ मैं ये मान लेता हूं
यही सोचकर खुद को संभाल लेता हूं
गैरों से शिकायत नहीं है अब
सब गलती है मेरी, ये मान लेता हूं
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हर प्रयास निष्फल रहा
क्यों दूर मुझसे तू हर पल रहा
चाहकर तुझे हर ख्वाहिश ख़त्म
तू है सिर्फ़ मेरी, मैं ये ठान लेता हूं
है तुम्हें भी इश्क़, मैं ये मान लेता हूं।।
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दूरियां बढ़ती रहीं मजबूरियां बढ़ती रहीं
और ये तन्हाइयां, देख मुझे हंसती रहीं
मैं हर वक्त तेरी याद में ही काट लेता हूं
है तुम्हें भी इश्क़, मैं ये मान लेता हूं।।
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कभी कुछ गुफ्तगू होती, तो शायद बात बन जाती
तुमको जान लेता मैं, मुझको तुम समझ जाती
दूर रहकर भी मैं तुमसे तुम्हारा साथ देता हूं
है तुम्हें भी इश्क़, मैं ये मान लेता हूं।।
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कभी सुनते जो हाल ए दिल, तो शायद जान लेते तुम
है मोहब्बत क्या ये पहचान लेते तुम
मेरे रग रग में तुम्हीं हो, और मैं तुमसे ही जीता हूं
है तुम्हें भी इश्क़, मैं ये मान लेता हूं।।
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अगर किस्मत को लिखते हम, तो उसमे सिर्फ तुम होते
हर वक्त तेरी यादों के सपनों में हम खोते
मुकम्मल हो सफ़र अपना, यही बस तुमसे कहता हूं
है तुम्हें भी इश्क़, मैं ये मान लेता हूं।।
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कभी आते जो ख्वाबों में, पाते तुम वहां खुद को
ज्यों ही शाम होती है, याद आते हो तुम मुझको
तुम्हारी प्यारी बातों से, मैं इतना जान लेता हूं
है तुम्हें भी इश्क़, मैं ये मान लेता हूं।।
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तुम्हारे नाम से ही मैं, हर बात लिखता हूं
कुछ वक्त लिखता हूं, कुछ जज़्बात लिखता हूं
कलम जब भी उठाता हूं, तुम्हारा नाम लिखता हूं
न जानें क्यों मैं तुमको, सुबह शाम लिखता हूं
तुम्हीं को हर सहर लिखता, तुम्हीं को शाम लिखता हूं
हुआ है इश्क़ ख्वाबों से, जब मैं जान लेता हूं
है तुम्हें भी इश्क़, मैं ये मान लेता हूं।।
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अभिषेक विश्वकर्मा ✍
हरदोई, उत्तर प्रदेश
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