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वह चारदीवारी जहाँ बचपन देखा
माँ के आँचल में हमेशा सावन देखा
वो सिर्फ एक सरकारी घर नहीं था
पिता के संस्कारों का बिछावन देखा
पापा के डांट में मेरे लिए चिंता ही देखी
और माथे पर चिंता का कारण देखा
मुझे मार माँ का रोना भी लाज़मी ही था
उसी चोट पर माँ का लगाया मरहम देखा
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