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वह चारदीवारी जहाँ बचपन देखा
माँ के आँचल में हमेशा सावन देखा
वो सिर्फ एक सरकारी घर नहीं था
पिता के संस्कारों का बिछावन देखा
पापा के डांट में मेरे लिए चिंता ही देखी
और माथे पर चिंता का कारण देखा
मुझे मार माँ का रोना भी लाज़मी ही था
उसी चोट पर माँ का लगाया मरहम देखा
सपनों का पीछा करते इस सफर में
बहुत कुछ मनभावन देखा
अब तो फ्लैट्स ही फ्लैट्स दिखते हैं
पर वहीं हमनें आखिरी आँगन देखा
ज़िन्दगी के जहाँ सपनें पले थे
एकाएक सपनों में वो घर आँगन देखा
ज़िन्दगी में उड़ने के पंख वहीं मिले
वो चारदीवारी वो बचपन देखा
~ अभिनव
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