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क्या ढूंढ रहे हो पथिक,
कौन गली को जाना है।
विचरण कर लो हर राह मगर,
अंत इसी डगर पर आना है।।
वो सागर की लहर नहीं तुम,
तुम तो अनंत छोर हो।
ये दृष्टि का मायाजाल नहीं तुम,
तुम तो सहजता का सिरमौर हो।।
स्वप्न का रहस्य नहीं तुम,
अहंकार की बहस नहीं तुम,
काल के चक्र की दूरी भी तुमसे,
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