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माना रहा श्रणिक भ्रमित, पथ विचलित मैं , ओझल मेरा ताप रहा
पर शक्तियों को जो सदा सुला सके, कहो कोन ऐसा श्राप रहा
भाग्य स्मृतियों का तो लौट आना ही रहा, जब धर्म परम निभाना रहा |
कहो वचन बध्ता , मन की श्रद्धा कब हारी हैं
धर ध्यान धरा का, माँ का, लड़ जाना ही वीरों का काम रहा |
कर तिलक चंदन सी माटी का, पहन केसरिया उद्दवलित ब
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