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कमर उस दिलरुबा की दिलरुबा है

Wali Muhammad WaliWali Muhammad Wali
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कमर उस दिलरुबा की दिलरुबा है

निगह उस ख़ुश-अदा की ख़ुश-अदा है

सजन के हुस्न कूँ टुक फ़िक्र सूँ देख

कि ये आईना-ए-मअ'नी-नुमा है

ये ख़त है जौहर-ए-आईना-राज़

इसे मुश्क-ए-ख़ुतन कहना बजा है

हुआ मालूम तुझ ज़ुल्फ़ाँ सूँ ऐ शोख़

कि शाह-ए-हुस्न पर ज़िल्ल-ए-हुमा है

न होवे कोहकन क्यूँ आ के आशिक़

जो वो शीरीं-अदा गुलगूँ-क़बा है

न पूछो आह-ओ-ज़ारी की हक़ीक़त

अज़ीज़ाँ आशिक़ी का मुक़तज़ा है

'वली' कूँ मत मलामत कर ऐ वाइज़

मलामत आशिक़ों पर कब रवा है

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