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हुआ ज़ाहिर ख़त-ए-रू-ए-निगार आहिस्ता-आहिस्ता

Wali Muhammad WaliWali Muhammad Wali
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हुआ ज़ाहिर ख़त-ए-रू-ए-निगार आहिस्ता-आहिस्ता

कि ज्यूँ गुलशन में आती है बहार आहिस्ता-आहिस्ता

किया हूँ रफ़्ता रफ़्ता राम उस की चश्म-ए-वहशी कूँ

कि ज्यूँ आहू कूँ करते हैं शिकार आहिस्ता-आहिस्ता

जो अपने तन कूँ मिस्ल-ए-जूएबार अव्वल किया पानी

हुआ उस सर्व-क़द सूँ हम-कनार आहिस्ता-आहिस्ता

बरंग-ए-क़तरा-ए-सीमाब मेरे दिल की जुम्बिश सूँ

हुआ है दिल सनम का बे-क़रार आहिस्ता-आहिस्ता

उसे कहना बजा है इश्क़ के गुलज़ार का बुलबुल

जो गुल-रूयाँ में पाया ए'तिबार आहिस्ता-आहिस्ता

मिरा दिल अश्क हो पहुँचा है कूचे में सिरीजन के

गया काबे में ये कश्ती-सवार आहिस्ता-आहिस्ता

'वली' मत हासिदाँ की बात सूँ दिल कूँ मुकद्दर कर

कि आख़िर दिल सूँ जावेगा ग़ुबार आहिस्ता-आहिस्ता

 

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