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नील मणि मुख
पोखर में खड़ा सूर्य
झलक गया अभी से
बिम्ब भी
साँझ की आमद का
चन्द्रमा
खींच लिये चलता है अपना चित्र
पानी से बहुत दूर दूर वहाँ
और
अनिद्रा में डूबे हुए वे श्वेत से कुछ पंख
उस ओर शायद प्रतीक्षा करती बैठी हो
कागज़ की
वह, रसभरी !
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