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जिस भी सेमल की छीम्बी से उड़ती है वह

Teji GroverTeji Grover
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जिस भी सेमल की छीम्बी से उड़ती है वह
जिस भी दूर्वा की ओसभरी लोच में नम
जिस भी हरे साँप के नीचे से रेंग जाती है घास में
जिस भी दुधमुँहे दाँत से काट लेती है कुचाग्र को
जिस भी ईश्वर में घुलनशील है अनास्था की केंचुल में
जिस भी पत्ती से क्षमा माँगती है कि आत्माएँ मर्त्य हैं
जिस भी गर्भ में सुनती है व्यूह में प्रवेश की
जिस भी नक्षत्र पर सवार वह निहारती है पितरों के श्वेत को

वह रहे !

अपने व्योम में स्वच्छ
और पारभासी

आए न आए यहाँ


वह रहे !

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