
0 Bookmarks 79 Reads0 Likes
तारीकियों को आग लगे और दिया जले
ये रात बैन करती रहे और दिया जले
उस की ज़बाँ में इतना असर है कि निस्फ़ शब
वो रौशनी की बात करे और दिया जले
तुम चाहते हो तुम से बिछड़ के भी ख़ुश रहूँ
या'नी हवा भी चलती रहे और दिया जले
क्या मुझ से भी अज़ीज़ है तुम को दिए की लौ
फिर तो मेरा मज़ार बने और दिया जले
सूरज तो मेरी आँख से आगे की चीज़ है
मैं चाहता हूँ शाम ढले और दिया जले
तुम लौटने में देर न करना कि ये न हो
दिल तीरगी में घेर चुके और दिया जले
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments