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बोलिए तौ तब जब बोलिबे की बुद्धि होय,
ना तौ मुख मौन गहि चुप होय रहिए.
जोरिए तो तब जब जोरिबे को रीति जाने,
तुक छंद अरथ अनूप जामे लहिए .
गाईए तो तब जब गाईबे को कंठ होय ,
श्रवन के सुनितहिं मनै जमे गहिए .
तुकभंग, छंदभंग, अरथ मिलै न कछु,
सुंदर कहत ऐसी बानी नहिं कहिए .
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