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नभ की है उस नीली चुप्पी पर

Sumitranandan PantSumitranandan Pant
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नभ की है उस नीली चुप्पी पर
घंटा है एक टंगा सुन्दर,
जो घडी घडी मन के भीतर
कुछ कहता रहता बज बज कर।
परियों के बच्चों से प्रियतर,
फैला कोमल ध्वनियों के पर
कानों के भीतर उतर उतर
घोंसला बनाते उसके स्वर।
भरते वे मन में मधुर रोर
"जागो रे जागो, काम चोर!
डूबे प्रकाश में दिशा छोर
अब हुआ भोर, अब हुआ भोर!"
"आई सोने की नई प्रात
कुछ नया काम हो, नई बात,
तुम रहो स्वच्छ मन, स्वच्छ गात,
निद्रा छोडो, रे गई, रात!

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