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सुबह जब अंधकार कहीं नहीं होगा

Sudama Pandey DhoomilSudama Pandey Dhoomil
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सुबह जब अंधकार कहीं नहीं होगा,

हम बुझी हुई बत्तियों को

इकट्ठा करेंगे और

आपस में बाँट लेंगे.


दुपहर जब कहीं बर्फ नहीं होगी

और न झड़ती हुई पत्तियाँ

आकाश नीला और स्वच्छ होगा

नगर क्रेन के पट्टे में झूलता हुआ

हम मोड़ पर मिलेंगे और

एक दूसरे से ईर्ष्या करेंगे.


रात जब युद्ध एक गीत पंक्ति की तरह

प्रिय होगा हम वायलिन को

रोते हुए सुनेंगे

अपने टूटे संबंधों पर सोचेंगे

दुःखी होंगे

 

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