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तुम्हारी ज़ुल्फ़ का हर तार मोहन

Siraj AurangabadiSiraj Aurangabadi
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तुम्हारी ज़ुल्फ़ का हर तार मोहन

हुआ मेरे गले का हार मोहन

तसव्वुर कर तिरा हुस्न-ए-अरक़-नाक

मिरी आँखें हैं गौहर-बार मोहन

दम-ए-आख़िर तलक हूँ काफ़िर-ए-इश्क़

हुआ तार-ए-नफ़स ज़ुन्नार मोहन

बिरह का जान कुंदन है निपट सख़्त

दिखा इस वक़्त पर दीदार मोहन

हमारे मुसहफ़-ए-दिल की क़सम खा

किया है ज़ुल्म का इंकार मोहन

गुल-ए-आरिज़ कूँ तेरे याद कर कर

हुआ है दिल मिरा गुलज़ार मोहन

'सिराज' आतिश में है तेरे फ़िराक़ों

बुझा जा महर सीं यक बार मोहन

 

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