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है जुम्बिश-ए-मिज़्गाँ में तिरी तीर की आवाज़

Siraj AurangabadiSiraj Aurangabadi
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है जुम्बिश-ए-मिज़्गाँ में तिरी तीर की आवाज़

इस तीर में है सैद की तकबीर की आवाज़

मुश्ताक़ हूँ तुझ लब की फ़साहत का व-लेकिन

'राँझा' के नसीबों में कहाँ हीर की आवाज़

तू ख़ुसरव-ए-ख़ूबाँ है कि ले हिन्द सीं ता रोम

पहुँची है तिरे हुस्न-ए-जहाँगीर की आवाज़

हैरत के मक़ामात में क़ानून-ए-नवा नहीं

है साज़-ए-ख़मोशी लब-ए-तस्वीर की आवाज़

दीवाने कूँ मत शोर-ए-जुनूँ याद दिलाओ

हरगिज़ न सुनाओ उसे ज़ंजीर की आवाज़

पीता हूँ जुदाई में तिरी घूँट लहू की

सुन ग़ुंचा-दहन आशिक़-ए-दिल-गीर की आवाज़

ऐ जान-ए-'सिराज' आ के पतंगों की ख़बर लियो

सुन जाओ मिरे नाला-ए-शब-गीर की आवाज़

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