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दो-रंगी ख़ूब नईं यक-रंग हो जा

Siraj AurangabadiSiraj Aurangabadi
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दो-रंगी ख़ूब नईं यक-रंग हो जा

सरापा मोम हो या संग हो जा

तुझे ज्यूँ ग़ुंचा गर है दर्द की बू

लहू का घूँट पी दिल-तंग हो जा

कहा किस तरह दिल ने तुझ कूँ ऐ ग़म

कि दिल की आरसी पर ज़ंग हो जा

यही आहों के तारों में सदा है

कि बार-ए-ग़म सीं ख़म ज्यूँ चंग हो जा

दुआ है ऐ रह-ए-ग़म तूल-ए-उम्र का

क़दम पर है तो सौ फ़रसंग हो जा

गले में डाल रुस्वाई की अल्फी

अलिफ़ खिंच आह का बे-नंग हो जा

बिरह की आग में साबित-क़दम चल

'सिराज' अब शम्अ' का हम-रंग हो जा

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