
0 Bookmarks 73 Reads0 Likes
जिजीविषा
सहचर है कोई तो
इन अंधी गलियों में
क्या होगा दर्द से उबरने के बाद?
कभी-कभी लगता है
केवल आकाशहीन खण्डहर है मेरा मन
जिसे नहीं परस सकी
कोई भी स्वर्ण किरण
युगों पूर्व आया था
एक चित्रकार यहाँ
चला गया,
रंग शोख भरने के बाद!
सहचर है कोई तो...
तो क्या यह बुझा-बुझा जीवन भी
त्याग दूँ
अपनी ही साँसों का
पोंछ मैं सुहाग दूँ
पर जिजीविषा मेरी
एक नहीं सुनती है
चुनती है, यह केवल
जीवन को चुनती है
और तर्क देती है
खिलता है फूल नहीं कोई भी
झरने के बाद!
सहचर है कोई तो...
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments