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पिघल कर ही रहेगा एक दिन पत्थर,
दृगों के नीर पर इतना भरोसा है!
लिए अरमान दिल में बढ़ चली नौका
मगर तूफान ने मंझधार में टोका
मिलन ऐसी घड़ी में भी नहीं मुश्किल
तरी को तीर पर इतना भरोसा है!
मिलन की जिं़दगी से दूर हैं दोनों
विरह की वेदना में चूर हैं दोनों
हृदय जिससे बंधे हें दो, न टूटेगी
प्रणय-जंजीर पर इतना भरोसा है!
करों में मैं उठाये एक मूरत हँू
कि फिर फिर देख लेता मुग्ध सूरत हूँ
कहूँ तो चित्र में भी प्राण आ जायें
मुझे तस्वीर पर इतना भरोसा है।
सदा संघर्ष करता हूँ मुसीबत में,
हज़ारों आफ़तों की क्रूर हरकत में,
अजी, तक़दीर खुद ही मुस्करायेगी,
मुझे तदबीर पर इतना भरोसा है!
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