नेता शब्द दो अक्षरों से बना है। ‘ने’ और ‘ता’। इनमें एक भी अक्षर कम हो, तो कोई नेता नहीं बन सकता। मगर हमारे शहर के एक नेता के साथ अजीब ट्रेजडी हुई। एक दिन यह हुआ कि उनका ‘ता’ खो गया। सिर्फ ‘ने’ रह गया। इतने बड़े नेता और ‘ता’ गायब। उन्हें सेक्रेटरी ने बताया कि सर आपका ‘ता’ नहीं मिल रहा। आप सिर्फ ‘ने’ से काम चला रहे हैं। नेता बड़े परेशान। नेता का मतलब होता है, नेतृत्व करने की ताकत। ताकत चली गई, सिर्फ नेतृत्व रह गया। ‘ता’ के साथ ताकत गई। तालियां गईं, जो ‘ता’ के कारण बजती थीं। नेता बहुत चीखे। पर जिसका ‘ता’ चला गया, उस नेता की सुनता कौन है? खूब जांच हुई पर ‘ता’ नहीं मिला। नेता ने एक सेठ से कहा, ‘यार हमारा ‘ता’ गायब है। अपने ताले में से ‘ता’ हमें दे दो।’ सेठ बोला, ‘यह सच है कि ‘ले’ की मुझे जरूरत रहती है, क्योंकि ‘दे’ का तो काम नहीं पड़ता, मगर ताले का ‘ता’ चला जाएगा तो लेकर रखेंगे कहां? सब इनकम टैक्स वाले ले जाएंगे। कभी तालाबंदी करनी पड़ी तो? ऐसे वक्त तू तो मजदूरों का साथ देगा। मुझे ‘ता’ थोड़े देगा।’ नेता ने सेठ को बहुत समझाया। जब तक नेता रहूंगा, मेरा ‘ता’ आपके ताले का समर्थन करेगा। आप ‘ता’ मुझे दे दें और फिर ‘ले’ आपका। लेते रहिए, मैं कुछ नहीं कहूंगा। सेठ जी नहीं माने। विरोधी मजाक बनाने लगे। अखबारों में खबर उछली कि नेता का ‘ता’ नहीं रहा। अगर ‘ने’ भी चला गया तो यह कहीं का नहीं रहेगा। खुद नेता के दल के लोगों ने दिल्ली जाकर शिकायत की। आपने एक ऐसा नेता हमारे सिर थोप रखा है, जिसके पास ‘ता’ नहीं है।
नेता दुखी था पर उसमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह जनता के पास जाए और कबूल करे कि उसमें ‘ता’ नहीं है। एक दिन उसने अजीब काम किया। कमरा बंद कर जूता में से ‘ता’ निकाला और ‘ने’ से चिपकाकर फिर नेता बन गया। यद्यपि उसके व्यक्तित्व से दुर्गन्ध आ रही थी। मगर वह खुश था कि चलो नेता तो हूं। पार्टी ने भी कहा, जो भी नेता है, ठीक है। समस्या सिर्फ यह रह गई कि लोगों को पता चल गया। आज स्थिति यह है कि लोग नेता को देखते हैं और अपना जूता हाथ में उठा लेते हैं। उन्हें डर है कि कहीं वह इनके जूतों में से ‘ता’ ना चुरा ले। पत्रकार पूछते हैं, ‘सुना आपका ‘ता’ गायब हो गया था?’ वह धीरे से कहते हैं, ‘गायब नहीं हुआ था। माताजी को चाहिए था तो मैंने दे दिया। आज मैं जो भी हूं, उनके ही कारण हूं। वह ‘ता’ क्या मेरा ‘ने’ भी ले लें तो मैं इनकार नहीं करूंगा।’ नेता की नम्रता देखते ही बनती है। लेकिन मेरा विश्वास है मित्रो जब भी संकट आएगा, नेता का ‘ता’ नहीं रहेगा, लोग निश्चित ही जूता हाथ में ले बढ़ेंगे और प्रजातंत्र की प्रगति में अपना योगदान देंगे।
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