मूंद लो आँखें's image
1 min read

मूंद लो आँखें

Shamsher Bahadur SinghShamsher Bahadur Singh
0 Bookmarks 102 Reads0 Likes


मूंद लो आँखें
शाम के मानिंद।
ज़िंदगी की चार तरफ़ें
मिट गई हैं।
बंद कर दो साज़ के पर्दे।
चांद क्यों निकला, उभरकर...?
घरों में चूल्हे
पड़े हैं ठंडे।
क्यों उठा यह शोर?
किसलिए यह शोर?

छोड़ दो संपूर्ण – प्रेम,
त्याग दो सब दया – सब घृणा।
ख़त्म हमदर्दी।
ख़त्म –
साथियों का साथ।

रात आएगी
मूंदने सबको।

 

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts