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गीली मुलायम लटें

Shamsher Bahadur SinghShamsher Bahadur Singh
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गीली मुलायम लटें

आकाश

साँवलापन रात का गहरा सलोना

स्तनों के बिंबित उभार लिए

हवा में बादल

सरकते

चले जाते हैं मिटाते हुए

जाने कौन से कवि को...

नया गहरापन

तुम्हारा

हृदय में

डूबा चला जाता

न जाने कहाँ तक

आकाश-सा

ओ साँवलेपन

ओ सुदूरपन

ओ केवल

लयगति...

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