0 Bookmarks 85 Reads0 Likes
फ़ुटपाथों की दीवारों पर
कीलों से जड़ दिया गया हूँ।
नंगी सुबहें, भूखी शामें,
पहरा देतीं मुझको घेरे;
व्यर्थ हो गईं सब रोशनियाँ,
बेमानी हो गए अँधेरे!
चार दिशाओं की चौखट में
शीशे से मढ़ दिया गया हूँ!
मंदिर के घेरे के बाहर
एक शिलाखंड-सा गड़ा हूँ;
मरा हुआ देवता बना मैं
सब-कुछ को झेलता खड़ा हूँ!
मूर्ति निराकृति मैं, बालू के
पत्थर में गढ़ दिया गया हूँ!
कानों में डालकर उँगलियाँ
सुनता हूँ दूर के धड़ाके;
आँख बंद कर मैं सहता हूँ,
बेंतों के बेरहम सड़ाके!
भागकर कहाँ जा सकता हूँ,
हवा में जकड़ दिया गया हूँ!
बेमतलब बोलती ज़ुबाँ है,
अनचाहे घूमती नज़र है;
क़त्लगाह को जाने वाली
पिंजड़ागाड़ी मेरा घर है।
लावारिस कुत्ते-सा यों ही
सड़क पर पकड़ लिया गया हूँ!
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments