अप्रैल फूल's image
4 min read

अप्रैल फूल

Shail ChaturvediShail Chaturvedi
0 Bookmarks 922 Reads0 Likes


एक दिन सकारे
घर पर हमारे
मच गया हंगामा
कहने लगी बच्चो की माँ-
"रखना याद
दस दिन बाद
यानी एक अप्रेल को
अपनी वर्षगांठ मनाऊँगी
मिठाई बाज़ार से आएगी
नमकीन घर में बनाऊँगी
और सुनो!
हमारे भैया को दे दो तार
वे चार दिन पहले आएँ
भाभी व अम्मा को साथ लाएँ
सुख-दुख में
अपने ही साथ न देंगे
तो घर गृहस्थी के काम कैसे चलेंगे
पप्पू की बुआ को
एक दिन पहले पत्र डालना
और लिखना-
"अकस्मात
कल रात
वर्षगांठ मनाने की बात
हो गई है
तुम न आ सकोगी
इस बात का दुख है
तुम्ही सोचो!
उनको बुलाकर भी क्या करोगे
इस दड़बे में
किस-किस को भरोगे
वे आएँगी
तो बच्चो को भी लाएँगी
और सुनो,
एडवांस की अर्ज़ी दे आना
लोगों का क्या है
कहते है-"दारू पीता है।
मगर लेडीज़ कपड़े तो गज़ब के सीता है
पचास बरस की बुढ़िया
दिखने लगती है गुड़िया
अब तक खूब बनी
आगे नहीं बनूंगी
साड़ी और ब्लउज़ नहीं पहनूंगी
युग बदल गया है
फैशन चल गया है
तंग सलवार हो
रंग व्हाईट हो
स्लीवलैस कुर्ता हो
नीचा और टाइट हो
चोटियो का रिवाज़ भी हो गया पुराना
आजकल है जूड़ो का ज़माना
बाज़ार में बिकते है
नक़ली भी असली दिखते है
एक तुम भी ले आना
तैयार ना मिले तो आर्डर दे आना
कपड़े बच्चो के लिए सिलेंगे
वर्ना पुराने कपड़ो में
अपने नहीं, पराए दिखेंगे।"

हम चुपचाप सुन रहे थे
चूल्हे में पड़े भुट्टो की तरह भुन रहे थे
तड़तड़ाकर बोले-"क्या कहती हो
इक उम्र में हरकत
अज़ब करती हो
अरे, वर्षगांठ मनानी है
तो बच्चो की मनाओ
अपने आप का तमाशा न बनाओ
लोग मज़ाक उड़ाएंगे
तुम्हारा क्या बिगड़ेगा
मुझे चिढ़ाएंगे
मुझे ज्ञात है
सन छयालीस की बात है
तुम जन्मी थीं मार्च में
तुम्हारे बाप थे जेल में
और तुम वर्षगांठ मना रही हो अप्रेल में
फिर तंग कपड़ो में, उम्र
बच्ची नहीं हो जाती
नख़रे दिखाने से बुढ़िया
बच्ची नहीं हो जाती।"

वे बन्दूक से निकली गोली की तरह
छूटीं
वियतनाम पर
अमरीकी बम-सी फूटीं-
"तुम भी कोई आदमी हो
मेरा मज़ाक़ उड़ाते हो
अपनी ही औरत को
बुढ़िया बुलाते हो
अरे, औरो को देखो
शादी के बाद
डालकर हाथो में हाथ
मज़े से घूमती हैं
सड़को पर
बागों में
साइकल पर
तांगों में
मगर यहाँ
ऐसे भाग्य कहाँ
पड़ौस के गुप्ता जी के बच्चे हैं
मगर तुमसे अच्छे हैं
मज़ाल है जो कह दें
औरत से आधी बात
पलको पर बिठाये रहते हैं
दिन-रात
और एक तुम हो
जब देखो
मेरे मैके वालो की पगड़ी उछालते हो
सारी दुनिया में
तुम्हीं तो साख वाले हो
बड़ी नाक वाले हो
बाकी सब तो नकटे हैं
जब हमारे बाप जेल में थे
तो तुम वहीं थे न
जेलर तुम्ही थे न
नब्ज़ पहचानती हूँ
अच्छे, अच्छों की
खूब चुप रही, अब बताऊँगी
देखती हूँ कौन रोकता है
वर्षगांठ अप्रेल में
मनाऊँगी, मनाऊँगी
ज़रूर-ज़रूर मनाऊँगी।

हम तुरुप से कटे नहले की तरह
खड़े-खड़े कांप रहे थे
अपना पौरुष नाप रहे थे
अपनी शक्ती जान गए
वर्षगांठ मनाने की बात
चुपचाप मान गए
तार दे दिया पूना
सलहज, सास और साले
जान-पहचान वाले
लगा गए चूना
पांच सौ का माल उड़ा गए
हाथी चवन्नी का
दस पैसे का सुग्गा
अठन्नी का डमरू
पांच पैसे का फुग्गा
तोहफ़े में पकड़ा गए
उम्मीद थी अंगूठी की
अंगूठा दिखा गए
हमारी उनका पारा ही चढ़ा गए
बोलीं-"भुक्खड़ हैं भुक्खड़
चने बेचते हैं
चने
ज़रा-सा मुंह छुआ
और दौड़ पड़े खाने
अरे, आदमी हो
तो एटीकेट जानें
अब हम भी उखड़ गए
आख़िर आदमी हैं
बिगड़ हए-
"कार्ड पप्पू ने छपवए थे
तुमने बंट्वाए थे।"
तभी मुन्ना हमारे हाथ का फ़ुग्गा ले गया
निमंत्रण-पत्र हाथों में दे गया
पढ़ते ही कार्ड
समझ में आ गई सारी बात
छपना चहिए था-"जन्म-दिवस है देवी का।"
मगर छप गया था-"बेबी का।"
दूसरे कमरे में
श्रीमती जी
पप्पू को पीट रहीं थीं
बेतहशा चीख़ रहीं थीं-
"स्कूल जाता है, स्कूल।"
बच्चे चिल्ला रहें थे-
"अप्रेल फूल, अप्रेल फूल।"
और चुन्नू डमरू बजाकर
मुन्नी को नचा रहा था
वर्षगांठ के लड्डू पचा रहा था।

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts