0 Bookmarks 69 Reads0 Likes
जलते थे तुम कूँ देख के ग़ैर अंजुमन में हम
पहुँचे थे रात शम्अ के हो कर बरन में हम
तुझ बिन जगह शराब की पीते थे दम-ब-दम
प्याले सीं गुल के ख़ून जिगर का चमन में हम
लाते नहीं ज़बान पे आशिक़ दिलों का भेद
करते हैं अपनी जान की बातें नयन में हम
मरते हैं जान अब तो नज़र भर के देख लो
जीते नहीं रहेंगे सजन इस यथन में हम
आती है उस की बू सी मुझे यासमन में आज
देखी थी जो अदा कि सजन के बदन में हम
जो कुइ कि हैगा आप कूँ रखता है आप अज़ीज़
यूसुफ़ हैं अपने दिल के मियाँ पैरहन में हम
क्यूँ कर न होवे क्लिक हमारा गुहर-फ़िशाँ
करते हैं 'आबरू' ये तख़ल्लुस सुख़न में हम
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments