शब्दों का ठेला's image
2 min read

शब्दों का ठेला

Sarveshwar Dayal SaxenaSarveshwar Dayal Saxena
0 Bookmarks 393 Reads0 Likes

मेरे पिता ने

मुझे एक नोटबुक दी

जिसके पचास पेज

मैं भर चुका हूँ।


जितना लिखा था मैंने

उससे अधिक काटा है

कुछ पृष्ठ आधे कोरे छूट गये हैं

कुछ पर थोड़ी स्याही गिरी है

हाशिये पर कहीं

सूरतें बन गईं हैं

आदमी और जानवरों की एक साथ

कहीं धब्बे हैं गन्दे हाथों के

कहीं किसी एक शब्द पर

इतनी बार स्याही फिरी है

कि वह सलीब जैसा हो गया है।

इस तरह

मैं पचास पेज भर चुका हूँ।


इसमें मेरा कसूर नहीं है

मैंने हमेशा कोशिश की

कि हाथ काँपे नहीं

इबारत साफ सुथरी हो

कुछ लिखकर काटना न पड़े

लेकिन अशक्त बीमार क्षणों में

सफेद पृष्ठ काला दीखने लगा है

और शब्द सतरों से लुढ़क गये

कुछ देर के लिए जैसे

यात्रा रुक गयी।


अभी आगे पृष्ठ खाली हैं

निचाट मैदान

या काले जंगल की तरह।

बरफ गिर रही है।

मुझे सतरों पर से उसे हटा हटाकर

शब्दों का यह ठेला खींचना है

जिसमें वह सब है

जिसे मैं तुममे से हर एक को

देना चाहता हूँ

पर तुम्हारी बस्ती तक पहुँचू तो।


मजबूत है सीवन इस नोटबुक की

पसीने या आँसुओं से

कुछ नहीं बिगड़ा!

यदि शब्दों की तरह कभी

यह हाथ भी लुढ़क गया

तो इस वीराने में

तुम इसके जिल्द की

टिमटिमाती रोशनी टटोलते

ठेले तक आना

और यह नोट बुक ले जाना

जिसे मेरे बाप ने मुझे दी थी

और जिसके पचास पेज

मैं भर चुका हूँ।


लेकिन प्रार्थना है

अपने झबरे जंगली कुत्ते मत लाना

जो वह सूँघेगे

जो उन्हें सिखाया गया हो,

वह नहीं

जो है।

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts