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कमरे में सजा रक्खा है

Sarvesh ChandausiSarvesh Chandausi
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कमरे में सजा रक्खा है बेजान परिन्दा।
ये देख रहा खिड़की से हैरान परिन्दा।।

उड़ जाए तो फिर हाथ नहीं आए किसी के।
होता है कुछ इस तरह का ईमान परिन्दा।।

जिस लम्हा उदासी में घिरा होगा मेरा दिल।
आँगन में उतर आएगा मेहमान परिन्दा।।

साथी से बिछड़ने का उसे ग़म है यकीनन।
उड़ता जो फिरे तन्हा परेशान परिन्दा।।

कब कौन बला अपने शिकंजे में जकड़ ले?
रहता नहीं इस राज से अन्जान परिन्दा।।

तर देख रहा बाजू-ओ-पर अपने लहू में।
समझा था क़फस तोड़ना आसान परिन्दा।।

ले आएगा क्या जाके मेरे यार की चिट्ठी।
कर पाएगा क्या मुझ पे' ये अहसान परिन्दा।।

इस शाख से उस शाख पे' हसरत में समर की।
क्यों बैठा के होता है पशेमान परिन्दा।।

हम तक भी चली आएँगी खिड़की से हवाएँ।
'सर्वेश' करे पैदा तो इम्कान परिन्दा।।

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