इन्हीं तृण-फूस-छप्पर से's image
1 min read

इन्हीं तृण-फूस-छप्पर से

Sachchidananda Vatsyayan "Agyeya"Sachchidananda Vatsyayan "Agyeya"
0 Bookmarks 406 Reads0 Likes

इन्हीं तृण-फूस-छप्पर से
ढंके ढुलमुल गँवारू
झोंपड़ों में ही हमारा देश बसता है

इन्हीं के ढोल-मादल-बाँसुरी के
उमगते सुर में
हमारी साधना का रस बरसता है।

इन्हीं के मर्म को अनजान
शहरों की ढँकी लोलुप
विषैली वासना का साँप डँसता है।

इन्हीं में लहरती अल्हड़
अयानी संस्कृति की दुर्दशा पर
सभ्यता का भूत हँसता है।

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts