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सोहत है चँदवा सिर मोर को, तैसिय सुन्दर पाग कसी है।
तैसिय गोरज भाल विराजत, तैसी हिये बनमाल लसी है।
'रसखानि' बिलोकत बौरी भई, दृग, मूंदि कै ग्वालि पुकार हँसी है।
खोलि री घूंघट, खौलौं कहा, वह मूरति नैनन मांझ बसी है।
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