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जब छाए कहीं सावन की घटा, रो-रो के न करना याद मुझे ।
ऐ जाने तमन्ना ग़म तेरा, कर न दे कहीं बरबाद मुझे ।
जो मस्त बहारें आई थीं, वो रूठ गईं उस गुलशन से,
जिस गुलशन में दो दिन के लिए, क़िस्मत ने किया आज़ाद मुझे ।
वो राही हूँ पलभर के लिए, जो ज़ुल्फ़ के साए में ठहरा,
अब ले के चल दूर कहीं, ऐ इश्क़ मेरे बेदाग मुझे ।
ऐ याद-ए-सनम अब लौट भी जा, तू आ गई क्यूँ समझाने को
मुझको मेरा ग़म शात[1] है, तू और न कर नौशात मुझे ।
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