कण-कण कोई कनक's image
2 min read

कण-कण कोई कनक

Raj ShekharRaj Shekhar
0 Bookmarks 447 Reads0 Likes

कण-कण कोई कनक
कोई भनक
कानों कान दिया
धन-धन ये जो धनक
ये जो खनक
धरा छान लिया
अरे आओ ना तुम्बाड़ जोगना है तुम्हें रे
अरे जाओ ना तुम्बाड़ भोगना है तुम्हें रे
धन धन मेह गरजे
देह फिर भी जले ज्वाल जिया
क्षण क्षण मनको भेद
तन को वेध सब उछाल दिया
कभी-कभी दिखे, कभी छुपे वो काल सा
कभी-कभी हँसे, कभी कसे एक जाल सा
टुक-टुक ताके, कभी झाँके कोई लालसा
मुड़-मुड़ मारे, तन ताड़े वो अकाल सा
सदियों से ऐसा है ये भूखा रे
सदियों से ऐसा रूखा-सूखा रे
खाता जाए कांकड़-पाथर-आटा ये
पीता जाए भीषण भादो, प्यासा ये
पग पग लगे कान, भेद-भान, धकधकाए जिया
तम तम यम समान, काँपे प्राण, हकबकाए हिया
अरे आओ ना तुम्बाड़ जोगना है तुम्हें रे
अरे जाओ ना तुम्बाड़ भोगना है तुम्हें रे
धन धन मेह गरजे
देह फिर भी
जले ज्वाल जिया
क्षण क्षण मनको भेद
तन को वेध
सब उछाल दिया
बन बन फिरा, सरफिरा, कहीं बाट में
दिन कहीं लड़ा, कहीं गिरा, किसी रात में
जो ना था लिखा, वो लिखा, ख़ुद हाथ में
कहीं ना थमा, अब रमा, मन ठाठ मे
जो भी दिन गया वो तो काला था
आने वाले में भी क्या उजाला था
उजली थी तो मेरी वासना
उसी से धुली मेरी आत्मा
दर-दर घूम-घाम, धूल छान स्वर्ण खान लिया
चमचम आन-बान, राग तान, मैंने ठान लिया
अरे आओ ना तुम्बाड़ जोगना है तुम्हें रे
अरे जाओ ना तुम्बाड़ भोगना है तुम्हें रे

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts