सूखा तालाब's image

कहते हैं कि एक वीर बंजारे ने
बेटे को बलि चढ़ा दिया था
और तब पानी से लबालब भर गया था
यह तालाब
अब उसकी हालत कुछ ठीक नहीं है

चढ़ते होंगे कभी उस पर फूल
रहा होगा वह कभी दर्शनीय
अब वह कीचड़ में लिथड़ा है
ख़ाली होते जा रहे सज्जन के मन की तरह

नेता जी आते हैं
और हाथ फटकार-फटकार कर
नाना भंगिमाएँ दिखा कर
करते हैं जनता को आश्वस्त
कि सफ़ाई करा देंगे इसकी
वह नीचे धँसता जाता है
लगातार खँडहर होती इमारत की तरह
उन लोगों की तरह
विवेक जिन्हें छोड़ कर जा चुका

अब कोई नहीं नहाता उसके घाटों पर
मन एक टीस बन कर रह गया है
वीभत्स में बदलता गया शृंगार

उसकी लहरों के हाथ
भर-भर कर उछाल
नहलाते रहे बच्चों को बूढ़ों को चंचल रमणियों को
और उजले के उजले बने रहे
अब वे टूट कर नीचे पड़े हैं
भैंसे उन पर सींगों से करती हैं वार
आस-पास उनके सड़ाँध है
जिसके भीतर
अपनी थूथन घुसाते हैं सूअर

पपड़ियों से भरी है सूख गई उसकी देह
जिसे दबोचते मकानों की लाइनें
कुछ दिनों में लोग ढूँढ़ेंगे
कि एक तालाब यहाँ हुआ करता था
वह गया तो गया कहाँ...
कॉलोनियों के भीतर
किसी की ग़मी की याद लौट कर आती हुई

अब सिवार का श्याम वस्त्र नहीं है उस पर
खिलती चाँदनी की तरह जा चुकी
सफ़ेद कमलों की पाँत
किसी गड्ढे में कीचड़ और मल के बीच
तड़पती दिखती कोई मछली
पक्षहीन वह जा भी कहाँ सकती है

किसी दूसरे गड्ढे में देखी जा सकती है उसकी काया
कई दिनों के भूखे भिखारी जैसी
सारे शहर की नालियों के मल के बीच
किसी तरह साँस लेती
और बारिश का इंतजार करती।

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