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क्या करे यह धरती?
इस सागर का यह क्या करे?
जितना गंभीर और विशाल
धरती से कई गुना बड़ा इसका आकार
पर उसके लिए तो
वह निरा बच्चा ही था
उसके पाँवों पर पड़ा खेलता रहता
फेन के पुंज में खिलखिलाता
वह इसे खेलता देख ख़ुश हो लेती थी
कविजन कहते
हमारी यह धरती : सागररशना।
कभी-कभी शरारत पर उतर आता सागर
वह लहरों के हाथ उठा-उठा कर धरती को छूना चाहता
उसे नहला देता।
धरती उसके खेल से भी ख़ुश ही होती
सागर उसके आगे थिरकता
कभी-कभी दुस्साहस कर बैठता सागर
धरती के पुत्रों की नौकाएँ डुबो देता
धरती उदास देखती रह जाती
जहाज़ डूब जाते....
पर ऐसा तो पहले नहीं हुआ कि
सागर दुर्दांत दानव की तरह
इसे निगल लेने को दौड़ लगाए
यह सागर तो पहचाना हुआ नहीं
इसका ऐसा विकराल रूप पहले देखा नहीं
इस सागर का क्या करे यह धरती?
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