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सच तो ये है कि दीदा-वर हो तुम
बे-ख़बर हम हैं बा-ख़बर हो तुम
वाक़िफ़-ए-राज़-ए-ख़ैर-ओ-शर हो तुम
ख़ुश-ख़याल और ख़ुश-नज़र हो तुम
आश्ना-ए-रुमूज़-ए-कुन-फ़-यकुन
राज़-ए-हस्ती से बा-ख़बर हो तुम
जिस से रौशन है मतला-ए-उम्मीद
शाम-ए-ग़ुर्बत में वो सहर हो तुम
कौन है ये हरीफ़-ए-शो'ला-ए-तूर
ऐ मैं क़ुर्बान जल्वा-गर हो तुम
दश्त-ए-ग़ुर्बत में राह-ए-हस्ती में
मैं समझता हूँ हम-सफ़र हो तुम
एक निस्बत है निस्बत-ए-मौहूम
बे-नवा मैं हूँ ताजवर हो तुम
'राज़' दो ऐब हैं यही तुम में
साफ़-गो और हक़-निगर हो तुम
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