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हुस्न-ए-सूरत देख कर रंग-ए-तबीअ'त देख कर
महव-ए-हैरत हूँ सवाद-ए-बज़्म-ए-ग़ुर्बत देख कर
मुझ से पूछे राज़ की बातें मुझे मा'लूम हैं
क्यूँ परेशाँ हो कोई नैरंग-ए-फ़ितरत देख कर
वाक़िआ' है वाक़िआ' अहल-ए-नज़र से पूछिए
हुस्न भी हैरत में है शान-ए-मोहब्बत देख कर
तेज़-गामी मुक़तज़ा-ए-जोश-ए-उल्फ़त ही सही
लेकिन ऐ रहरव नुक़ूश-ए-राह-ए-उल्फ़त देख कर
ऐ वतन सुब्ह-ए-वतन शाम-ए-वतन अहल-ए-वतन
याद आती है तुम्हारी दश्त-ए-ग़ुर्बत देख कर
मेरे साक़ी तेरे क़ुर्बां क्या कहूँ किस से कहूँ
ज़र्फ़-ए-मय-कश देख कर रंग-ए-तबीअ'त देख कर
बे-ख़ुदी में भी ख़याल-ए-हुस्न-ए-ख़ुद्दारी रहे
नग़्मा-ज़न हो 'राज़' रंग-ए-बज़्म-ए-ग़ुर्बत देख कर
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