
दिल को हरीफ़-ए-गर्दिश-ए-दौराँ किए हुए
बैठा हुआ हूँ ज़ीस्त का सामाँ किए हुए
अब मुश्किलात-ए-राह-ए-मोहब्बत का ज़िक्र क्या
इक उम्र हो गई इन्हें आसाँ किए हुए
पीता हूँ रोज़ पीता हूँ तल्ख़ाबा-ए-उमीद
एहसास-ए-लुत्फ़-ए-साक़ी-ए-दौराँ किए हुए
बहला रहा हूँ दिल को फ़रेब-ए-ख़याल से
उम्मीद-ए-ग़म-गुसारी-ए-याराँ किए हुए
बुत-ख़ाना-ए-मजाज़ से गुज़रा हूँ बारहा
ख़ुद्दारी-ए-निगाह नुमायाँ किए हुए
अब जा रहा हूँ जानिब-ए-मय-ख़ाना-ए-मुग़ाँ
सद-एहतिराम-ए-हज़रत-ए-यज़्दाँ किए हुए
अच्छा तो आज सैर-ए-ख़राबात ही सही
लेकिन ख़याल-ए-तल्ख़ी-ए-दौराँ किए हुए
बैठे हुए हैं बादा-कशान-ए-वफ़ा ख़मोश
एहसास-ए-तल्ख़-कामी-ए-याराँ किए हुए
देखो वो जा रहे हैं हरीफ़ान-ए-तेज़-गाम
अज़्म-ए-तवाफ़-ए-मंज़िल-ए-जानाँ किए हुए
अहबाब-ए-ख़ुश-मज़ाक़ का एहसान है ये 'राज़'
मुद्दत हुई थी दिल को ग़ज़ल-ख़्वाँ किए हुए
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