अब कैसे रफ़ू पैराहन हो इस आवारा दीवाने का's image
2 min read

अब कैसे रफ़ू पैराहन हो इस आवारा दीवाने का

Qamar JalaviQamar Jalavi
0 Bookmarks 168 Reads0 Likes

अब कैसे रफ़ू पैराहन हो इस आवारा दीवाने का

क्या जाने गरेबाँ होगा कहाँ दामन से बड़ा वीराने का

वाइ'ज़ न सुनेगा साक़ी की लालच है उसे पैमाने का

मुझ से हों अगर ऐसी बातें मैं नाम न लूँ मयख़ाने का

क्या जाने कहेगा क्या आ कर है दौर यहाँ पैमाने का

अल्लाह करे वाइ'ज़ को कभी रस्ता न मिले मयख़ाने का

तुर्बत से लगा करता महशर सुनते हैं कोई मिलता ही नहीं

मंज़िल है बड़ी आबादी की रस्ता है बड़ा वीराने का

जन्नत में पिएगा क्यूँकर ऐ शैख़ यहाँ गर मश्क़ न की

अब माने न माने तेरी ख़ुशी है काम मिरा समझाने का

जी चाहा जहाँ पर रो दिया है पाँव में चुभे और टूट गए

ख़ारों ने भी दिल में सोच लिया है कौन यहाँ दीवाने का

हैं तंग तिरी मय-कश साक़ी ये पढ़ के नमाज़ आता है यहीं

या शैख़ की तौबा तुड़वा दे या वक़्त बदल मयख़ाने का

हर सुब्ह को आह सर से दिल-ए-शादाब जराहत रहता है

गर यूँ ही रहेगी बाद-ए-सहर ये फूल नहीं मुरझाने का

बहके हुए वाइ'ज़ से मिल कर क्यूँ बैठे हुए हो मय-ख़्वारो

गर तोड़ दे ये सब जाम-ओ-सुबू क्या कर लोगे दीवाने का

अहबाब ये तुम कहते हो बजा वो बज़्म-ए-अदू में बैठे हैं

वो आएँ न आएँ उन की ख़ुशी चर्चा तो करो मर जाने का

उस वक़्त खुलेगा हिस को भी एहसास-ए-मोहब्बत है कि नहीं

जब शम्अ' सर-ए-महफ़िल रो कर मुँह देखेगी परवाने का

बादल के अंधेरे में छुप कर मयख़ाने में आ बैठा है

गर चाँदनी हो जाएगी 'क़मर' ये शैख़ नहीं फिर जाने का

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts