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शब जो दिल बे-क़रार था क्या था
किसी का इंतिज़ार था क्या था
चश्म दर पर थी सुब्ह तक शायद
कुछ किसी से क़रार था क्या था
मुद्दत-ए-उम्र जिस का नाम है आह
बर्क़ थी या शरार था क्या था
देख मुझ को जो बज़्म से तू उठा
कुछ तुझे मुझ से आर था क्या था
फिर गई वो निगह जो यूँ महरम
सैल थी या कटार था क्या था
रात 'क़ाएम' तू इस मिज़ाज पे वाँ
सख़्त बे-इख़्तियार था क्या था
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