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सुबह सुबह स्कूल जाते एक बच्चे के साथ हैं
दादी बनकर
जो उसे सड़क के हर दाएं बाएं के जोखिम से बचा रही है
शाम को बाजार से लौटते समय
जवान उंगलियां
अपनी बूढ़ी दादी को दे रही है अहसास कि
लड़खड़ाहट के पहले वो थाम लेगीं उसे
सुबह, दोपहर,शाम हो या रात
पूरे संस्कार में रहती हैं उंगलियां
ये अपनी नहीं भूलती अपना धर्म
बशर्ते हमारी आस्था बनी रहे
इन उंगलियों पर

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