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पांव सफर में हैं - प्रताप सोमवंशी

प्रताप सोमवंशीप्रताप सोमवंशी
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कभी आगे या पीछे नहीं चलते
सफर पर निकले पांव
बल्कि बांया पैर दायें के लिए
खुद को खींच लेता है पीछे
ठीक अगले ही पल
दायां भी यही दोहराता है
पैरों का राग-अनुराग
यहीं से समझ आता है
यह सच तब और खूबसूरत हो जाता है
जब एक के चोट या मोच खाने पर
दूसरा बिना ना नुकर
पूरा भार अपने उपर उठा लेता है
इस ख्याल के साथ कि
दर्द दूसरे पैर को छू न जाए
हां, पैर जब बीच सफर में
कहीं सुस्ताते हैं
या सफर से घर लौटकर आते है
बराबरी से आमने-सामने बैठकर
एक दूसरे से बतियाते है
उस सफर की विस्तार
जो तय किया है
दोनों ने साथ-साथ


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