0 Bookmarks 138 Reads0 Likes
कभी आगे या पीछे नहीं चलते
सफर पर निकले पांव
बल्कि बांया पैर दायें के लिए
खुद को खींच लेता है पीछे
ठीक अगले ही पल
दायां भी यही दोहराता है
पैरों का राग-अनुराग
यहीं से समझ आता है
यह सच तब और खूबसूरत हो जाता है
जब एक के चोट या मोच खाने पर
दूसरा बिना ना नुकर
पूरा भार अपने उपर उठा लेता है
इस ख्याल के साथ कि
दर्द दूसरे पैर को छू न जाए
हां, पैर जब बीच सफर में
कहीं सुस्ताते हैं
या सफर से घर लौटकर आते है
बराबरी से आमने-सामने बैठकर
एक दूसरे से बतियाते है
उस सफर की विस्तार
जो तय किया है
दोनों ने साथ-साथ
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments