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भले ही खड़ी हो पूरी देह इन पर
पूजने के बहुतेरे प्रतीक जुड़े हों पांवों के साथ
पर कोई नहीं गिनता औकात इनकी
ये खुद भी संकोची इतने कि
अपनी थकन को जाहिर करने से बचते हैं
रात-दिन कोई कहीं जोत दे, चले जाते हैं
लौटकर आते हैं चुपचाप सो जाते हैं
अनुशासित इतने हैं कि
गलत दिशा में चलने से पहले ठिठकते हैं
सड़क पर चलते समय
नीचे चीटीं आने से बचते हैं
देह की पूरी संरचना में
अपने श्रम और उपयोगिता के लिए
जाने जातें हैं पांव
इसलिए जरूरी है कि
देह के इतिहास में
तय की जाए इनकी सही जगह.
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