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सूंघ तो लेती है सबकुछ
सही और सटीक
बोलने से बचती है
संकोची है आंखों से भी ज्यादा
डरती है मर्यादा के मूर्तिभंजन से
इसलिए सांस लेने में संकट हो तब भी
अकसर चुप रहती है नाक
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