0 Bookmarks 31 Reads0 Likes
स्वतंत्र है मुंह
कहीं भी कुछ भी बोल दे
गलत हुआ तो गुनाह आंखों का
उन्होंने ऐसा देखा ही क्यों
कान के सिर पर भी चढ़ा देता दो पाप
कि तुमने सुना ही क्यों
और नाक ने गलत क्यों सूंघा
दिमाग के मत्थे तो
आसानी से मढ़ा जा सकता है दोष
कि उसने सोचा नहीं होता वैसा
तो नहीं होता ऐसा
मुंह का इतना बेअंदाज होना ठीक नहीं
हे आंख, कान, नाक और दिमाग
इस मुंह को संभालकर रखा करों
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments