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भावुक, बच्चा, बेवकूफ, बदतमीज
क्या क्या विशेषण नहीं है एक दिल के पास
इसके बारे में कह तो कोई भी कुछ सकता है
समझने की सामर्थ्य मुश्किल से आती है
सच यह है कि
जब सारे उपलब्ध तर्क हार जाते हैं
थकान पूरी देह को कब्जे में ले रही होती है
नजदीक की चीजें भी धुंधली दिखाई देती हैं
खुद अपने हाथ, पैर, आंख से भरोसा उठने जैसा होता है
दिल तभी प्रवाहित करता है
अपनी संचित संवेदना का द्रव
पहुंचता है उर्जा में रूपातंरित होकर दिमाग तक
ताकि वह शुरू कर सके फिर सोचना
आंखों को उसी द्रव से मिलती है दृष्टि
इससे वे देख पाती हैं उम्मीदों के दरवाजे की दिशा
अपनी उपेक्षा और अनादर से ऊपर उठते हुए
दिल करता है वो सारे काम
जो देह के हित में हो
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