0 Bookmarks 33 Reads0 Likes
आंखे देखती हैं एक पल
उसके बाद सोचती हैं
फिर खर्चती है समय
पहचानने और परखने में
यह तय करने में
थोड़ा और वक्त लगाती हैं कि
होंठों को कहां तक और कितना
बताने की अनुमति दी जाए
आंखों की देखने से होंठों के बोलने तक की यात्रा
एक रियाज है
सुर-लय-ताल के साथ निर्वाह की
दरअसल कहीं कुछ भी बिखरा तो
बेसुरा हो जाता है जीवन
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments